चित्रकूट की मंदाकिनी: तीन दशक में ‘डेड रिवर’ होने का संकट….

जलप्रवाह में 90% गिरावट: तीन दशक में बन सकती है डेड रिवर।
Editor Amit Mishra…
चित्रकूट, चित्रकूट की पवित्र मंदाकिनी नदी अपनी गौरवशाली पहचान खोते हुए तीन दशक में पूर्णत, विलुप्त हो सकती है।
ग्रामोदय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग प्रमुख प्रो. घनश्याम गुप्ता के 31 वर्षों के वैज्ञानिक अध्ययन में इस सद्भावना भरी धारा के स्वास्थ्य संकेतों में भयावह गिरावट उजागर हुई है। यदि तत्काल ठोस सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो 30 साल बाद यह नदी ‘डेड रिवर’ यानी मरी हुई नदी घोषित हो जाएगी।
जलप्रवाह में 90% गिरावट।

वर्ष 1993 में मंदाकिनी का औसत जलप्रवाह 3000 लीटर प्रति सेकंड था।
मई 2025 में वही प्रवाह घटकर मात्र 300 लीटर प्रति सेकंड रह गया है।

इसी अनुपात में गिरावट जारी रहने पर 30 वर्षों में यह 30 लीटर प्रति सेकंड तक सीमित हो जाएगा, जबकि 50 लीटर का स्तर पार न होने पर नदी को मृत माना जाता है।
प्रो. गुप्ता के अनुसार, किसी नदी का समग्र स्वास्थ्य चार स्तंभों- जल प्रवाह, घुलित ऑक्सीजन, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और न्यूट्रिफिकेशन पर निर्भर करता है। वही मंदाकिनी में इन चारों में निम्नलिखित चिंताजनक अवस्थाएँ देखी गईं है।
- घुलित ऑक्सीजन- सुरक्षित स्तर से 70–80% कम, जिससे जलचर जीवन संकट में।
- बीओडी- मानक 5 मिलीग्राम/लीटर के मुकाबले 35–40 मिलीग्राम/लीटर, विशेषकर रामघाट एवं भरतघाट पर 150 गुणा तक अधिक।
- न्यूट्रिफिकेशन- खेतों व बस्तियों से बहकर आने वाले पोषक तत्वों की अधिकता से अल्गल ब्लूम बढ़ रहा है।
- जल प्रवाह- तीन दशक में दस गुना कमी, जो नदी को स्थिरता खोते हुए सूखने की कगार पर ले जा रही है।

चित्रकूट व आसपास के क्षेत्रों से सीधे छोड़े जा रहे सीवेज ने नदी को जहरीला बना दिया है। प्रो. गुप्ता बताते हैं, एक लीटर सीवेज 150 लीटर शुद्ध जल दूषित कर रहा है। यह अनुपात मानव स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत खतरनाक है।

मंत्रियों की दो दिवसीय बैठक एवं जागरूकता अभियान
नगरीय प्रशासन एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, मध्य प्रदेश के जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलवट और उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह 25-26 मई को डीआरआई, चित्रकूट में दो दिवसीय विचार मंथन कर समाधान योजना तैयार करेंगे। बैठक में नदी की सफाई, सीवेज प्रबंधन, वृक्षारोपण व स्थानीय समुदाय की भागीदारी पर विशेष जोर दिया जाएगा। इसके बाद घाटों पर व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाया जाएगा, जिसमें शिक्षण संस्थान, स्थानीय व्यापारियों व धार्मिक नेतृत्व की सहभागिता सुनिश्चित की जाएगी।

मंदाकिनी न केवल त्रेतायुगीन पौराणिक आख्याओं में वर्णित दिव्य नदी है, बल्कि आसपास के गाँवों के जीवन, कृषि और जैव विविधता की आधारशिला भी है। यदि नदी का विकिरण क्षणिक राजनीतिक प्रचार तक सीमित रहा, तो आने वाली पीढ़ियाँ इस पवित्र धारा को केवल ग्रंथों और कथाओं में ही खोज पाएंगी।

जानकारों की माने तो प्रशासनिक, तकनीकी व सामुदायिक प्रयासों से ही मंदाकिनी को पुनर्जीवित किया जा सकता है। संसाधनों का समन्वित नियोजन, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों का शीघ्र कार्यान्वयन, सतत जल संरक्षण व स्थानीय लोगों को सशक्त बनाकर ही इस नदी को ‘मरी हुई’ होने से बचाया जा सकता है। समय रहते अगर हम जागरूक हों, तभी त्रेतायुगीन मंदाकिनी फिर से जीवनदान पा सकेगी।

