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कोरोना के कहर से समूची दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है। चारों ओर त्राहिमाम-त्राहिमाम मची हुई है लेकिन दूसरी ओर एक सबसे बड़ी अच्छी बात यह है कि असंख्यों जीव-जंतुओं की जान बच रही है और इन निरीह प्राणियों की हत्या में भारी कमी आई है। जिसके फलस्वरूप मांस मछली की कीमतें अब जमीन पर आ गई है और खरीदारों का भारी टोटा पड़ गया है।
जब डाॅक्टर कहते थे कि शाकाहार अपनाओ और बीमारियों से छुटकारा पाओ, तब तो कोई सुनने को तैयार नहीं था और अब जब यह लगने लगा कि कोरोना हमारी जान न लेले तब झक मारकर शाकाहार की ओर दौड़ने लगे।
अपनी जान तो बड़ी प्यारी है और इन बेजुबान निरीह जानवरों की जान की कोई परवाह नहीं। यह बेचारे भी तो अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं। क्या इन निरीह प्राणियों को अपनी जिंदगी जीने का हक नहीं है?
चीन जैसा राक्षसी देश भी अब चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा है कि शाकाहार अपनाओ और अपनी जान बचाओ। वर्तमान में वहां की स्थिति बहुत वीभत्स है। बताते हैं कि चीनी इतनी क्रूरता पूर्वक मांसाहार करते हैं कि हृदय कांप जाए। यह लोग छोटे-छोटे चूहे जैसे जानवरों के नवजात बच्चों को भी गाजर मूली की तरह जिंदा चबा जाते हैं। जिंदी मछली के पेट को चीरकर मसाला भरके आग में भूनकर झटपट खा जाते हैं और वह तड़पती रहती है। कांतर को देखकर हम लोग तो एकदम डर जाते हैं लेकिन वे लोग जिंदी कातर को गर्म तेल में डालकर पापड़ की तरह तल डालते हैं और मसाला डालकर खा जाते हैं। यही नहीं छिपकली और सांप तक को नहीं छोड़ते। छी-छी धिक्कार है ऐसे नर पिशाचों को।
शायद प्रकृति या ईश्वर ने कोरोना के बहाने मनुष्य जाति को शाकाहार अपनाने का संदेश दिया है। हमारा देश भगवान बुद्ध और महावीर का देश है। कम से कम हम हिंदुस्तानियों को तो अब कोरोना से सबक लेकर शाकाहार को आत्मसात कर लेना चाहिए।
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