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कोराना का कोहराम, गैर जरूरी सामान जरूरी से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है

अमित मिश्रा, सतना |

शासन और प्रशासन ने डौंड़ी पिटवा रखी है कि केवल खानपान के जरूरी सामान की दुकानें कुछ समय के लिए खुलेंगी, लेकिन क्या खान-पान ही जरूरी होता है यदि किसी के घर में शार्ट सर्किट से बिजली के तारों में आग लग गई है और उसके घर में तमाम उपकरण जल गए हैं और बाजार में कोई सामान नहीं मिल रहा तो क्या वह महीनों तक बगैर बिजली और पंखों के बैठा रहेगा?

ऐसा तांडव मच रहा है कि चारों ओर हाहाकार ही हाहाकार मच रहा है, लोग जीते जी मरे जा रहे हैं, क्या दूध, राशन व दवाइयों के अलावा और चीजों की दुकानों को भी थोड़ी देर के लिए नहीं खुलना चाहिए। घर में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है और उनकी पेंसिल काॅपी खत्म हो गई है, लेकिन स्टेशनरी की दुकानें बंद है। किसी की साइकिल पंचर पड़ी है और उसे जुड़वाने का कोई जुगाड़ नहीं।

अरे भाई मंदिर, स्कूल, माॅल, रेल, बस, मेले, डेले आदि भले ही बंद कर दिए लेकिन छोटे-मोटे सामान जो जरूरी से भी ज्यादा जरूरी हैं उनकी व्यवस्था कैसे होगी? क्या किसी को इस बात की परवाह है? मोदी जी ने जो निर्णय देश हित में लिया उसका दुरुपयोग किस प्रकार हो रहा है। बड़ी शर्मनाक बात है महिलाएं प्रसव के लिए बीमार इलाज के लिए छटपटा रही हैं। और निरंतर दम भी तोड़ रही हैं। शायद कोरोना का प्रकोप यहां फैलता तब भी इतने न मरते अब तो बगैर कोरोना के ही महा कोरोना ने सितम ढा रखा है।

उदाहरण के रूप में चुटकुले नुमा एक किस्सा बताना चाहूंगा जो इस समय कोरोना की महामारी से जनता को बचाने के लिए किया जा रहा है, उस पर सटीक बैठता है। एक नई बहू घर में आई और ससुर से घुंघट करती थी, एक दिन अचानक ससुर सामने आ गए और वह सलवार शूट में थी बहू बेचारी सिटपिटा गई, घबराहट और इज्जत बचाने की जल्दबाजी में आव देखा न ताव दुपट्टा उठाकर अपना घूंघट कर लिया। यह हंसने की बात नहीं समझने की है। ठीक यही हाल कोरोना से निपटने हेतु जल्दबाजी और घबराहट में प्रशासन द्वारा किया जा रहा है। मतलब साफ है मोदी जी के आदेशों के अनुपालन में जबरदस्त खामियां हैं, इन्हें दूर किया जाना चाहिए।

जबकि मोदी जी का उद्देश्य लोगों को इस महामारी से बचाना है और समस्याओं का निराकरण भी करना है,

रेवांचलरोशनी अपील- आप सभी घर पर रहें और जरूरी सामान लेने जरूरी काम से ही घर से बाहर निकले व प्रशासन का सहयोग करें…

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