देश के विभिन्न राज्यों में उपमुख्यमंत्री नियुक्ति करने की प्रथा को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि उपमुख्यमंत्री का पदनाम संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है। ज्ञात हो, देशभर के 14 राज्यों में इस समय 26 उपमुख्यमंत्री नियुक्त हैं।
याचिका में कहा गया था कि संविधान में उपमुख्यमंत्री पद का कोई प्रविधान नहीं
अधिवक्ता मोहनलाल शर्मा द्वारा दायर इस जनहित याचिका में कहा गया है कि उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति का राज्य के नागरिकों से कोई लेना-देना नहीं है। न ही कथित उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति होने पर राज्य की जनता का कोई अतिरिक्त कल्याण होता है। इस जनहित याचिका में कहा गया था कि संविधान में कोई प्रविधान नहीं होने के बावजूद विभिन्न राज्य सरकारों ने उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति की है। संविधान के अनुच्छेद 164 में केवल मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति का प्रावधान है।
उपमुख्यमंत्री का पदनाम संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं
याचिका में यह भी कहा गया था कि उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति से बड़े पैमाने पर जनता में भ्रम पैदा होता है और राजनीतिक दलों द्वारा काल्पनिक पोर्टफोलियो बनाकर गलत और अवैध उदाहरण स्थापित किए जा रहे हैं, क्योंकि उपमुख्यमंत्रियों के बारे में कोई भी स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते हैं, हालांकि उन्हें मुख्यमंत्रियों के बराबर दिखाया जाता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि उपमुख्यमंत्री का पदनाम संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है। कोर्ट ने उनकी ये दलीलें दरकिनार करते हुए इस जनहित याचिका को खारिज कर दिया।