अमित मिश्रा।
परमिट-फिटनेस से क्या होना जाना? चालक-परिचालक की कसी जाएं मुश्कें, जिन रूट्स पर घाटा बताकर बंद की रोडवेज, उन पर दौड़ रही नेताओं की बसें, खूब कमाईनेताओं की बसों के ड्राइवर-कंडक्टर को किसका खौफ? अधिकान्स तो नशा कर दौड़ा रहे बसें..
शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, सरकार के जरूरी काम हैं तो क्या सुगम, सुरक्षित सफर सरकार का काम नहीं? फिर क्या कारण है कि देश में केवल मध्यप्रदेश ही ऐसा राज्य क्यों है जहां सरकार समर्थित परिवहन नहीं? सब कुछ निजी हाथों में। समूचा सफर सरकारी नियंत्रण से बाहर क्यों? घाटा बताकर बंद किए गए रोडवेज के बाद इस प्रदेश में लक्जरी बसों से महंगे सफर का कारोबार फिर कैसे फलफूल रहा है? बेतहाशा रफ्तार से दौड़ती बेलगाम बसों के आगे सरकार क्यों बेबस है? नई सरकार से उम्मीद है कि वह फिर से बसों का संचालन सरकार के नियंत्रण में लाए अन्यथा गुना जैसे हादसे होते रहेंगे
13 जिंदगियों को राख कर देने वाले गुना बस हादसे से भी अगर सरकार सबक ले ले तो भविष्य में निर्दोष मुसाफिरों की जान बच सकती है। यात्रियों का सफर सुगम हो सकता है। डॉ. मोहन यादव सरकार प्रदेश की परिवहन व्यवस्था पर श्वेत पत्र लेकर आए। इससे खुलासा हो जाएगा कि समूचे हिंदुस्तान में सिर्फ मध्यप्रदेश में ही बसें क्यों बेलगाम हैं? क्यों आए दिन बस हादसे हो रहे हैं? अधिकांश बसों के पीछे कोई न कोई नेता खड़ा है। इसमें दोनों दलों के नेता शामिल हैं।
बसों का संचालन लाभ का सौदा हो चला है। तभी तो सरकारी परिवहन व्यवस्था प्रदेश में खड़ी नहीं की जा रही है। उसकी जगह निजी कंपनियां बनाकर बसों का संचालन कर ये जताने की फर्जी कोशिशें की जा रही हैं कि इस संचालन के पीछे सरकार और उसका निगरानी तंत्र है। जबकि ऐसा कुछ नहीं, इस सबके पीछे नेता हैं।
1-1 करोड़ की दौड़ती वॉल्वो बसें क्या किसी सामान्य बस ऑपरेटर की हैं? जांच करें तो खुलासा हो जाए कि इन बसों के पीछे किसका पैसा लगा हुआ है। क्या करेगा आरटीओ, क्या करेगा उसका उड़नदस्ता? किस पर नकेल कसेगा? गुना की जिस बस ने 13 जिंदगियों को राख के ढेर में बदल दिया वो भी भाजपा नेता की थी। हैरत की बात है कि इस नेता की ऐसी दर्जनभर बसें हैं और सब बिना परमिट, फिटनेस। सस्पेंड आरटीओ और अन्य अफसर हो गए। नेताजी का क्या हुआ? उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। बस इसी कारण प्रदेश के लाखों मुसाफिरों का सफर राम भरोसे या ट्रांसपोर्ट माफिया भरोसे ही चल रहा है। कहीं कोई निगरानी तंत्र है ही नहीं।
हैरत की बात है कि जिस रोडवेज को ये कहकर बंद कर दिया गया कि वो घाटे में चल रहा है तो फिर उसी सिस्टम में दौड़ती नेताओं की बसें कैसे एक साल में एक से दो हो रही हैं? इसका जवाब किसी के पास है क्या? जवाब तो इसका भी नहीं कि सामान्य बसों की जगह इस प्रदेश में वॉल्वो बसों का महंगा सफर कैसे और किसके इशारे पर दिन दूना, रात चौगुना फल फूल रहा है? सरकारी बस जैसी भी थी, आम आदमी का सफर तो आसान था। मुसाफिर सरकार समर्थित परिवहन व्यवस्था का हिस्सा था। उसे भरोसा था कि कुछ गड़बड़ हुई तो सरकार संबंधित ड्राइवर, कंडक्टर को सस्पेंड कर देगी। निजी बसों में ये काम किसके जिम्मे है?