Home उत्तर प्रदेश कारसेवकों का बलिदान याद रखेगा हिंदुस्तान, छुपते-छुपाते, अनेक बाधाओं को पार कर, लाठी-गोली खाते हुए पहुंचे थे अयोध्या।

कारसेवकों का बलिदान याद रखेगा हिंदुस्तान, छुपते-छुपाते, अनेक बाधाओं को पार कर, लाठी-गोली खाते हुए पहुंचे थे अयोध्या।

12 second read
Comments Off on कारसेवकों का बलिदान याद रखेगा हिंदुस्तान, छुपते-छुपाते, अनेक बाधाओं को पार कर, लाठी-गोली खाते हुए पहुंचे थे अयोध्या।
0
230

अमित मिश्रा, सतना।

मीलों पैदल चले, पांव में छाले पड़े, पर नहीं रुके कदम, गोलियों की बौछार भी नहीं रोक पाई।

कई लाशें बनकर सरयू में तैर गए, कई घर ही नहीं लौटे, सीने और मस्तक पर झेल ली गोलियां।

1990 में संघर्ष किया, 1992 में विजय पाई, नेताओं के कहने से भी न रुके, ढांचा जमींदोज करके ही माने।

“कारसेवकों का बलिदान, याद रखेगा हिंदुस्तान’, ये नारा याद है न? कितना गूंजा था देशभर में। तब, जब ये नारा भी गूंज रहा था- रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे। कौन थे ये लोग? जो गगनभेदी नारा गुंजायमान करते थे- बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का। सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे… का जयघोष करते ये वीर बांकुरे कौन थे? कहां से आए थे? क्यों आए थे? क्या करना चाहते थे? सिर पर केसरिया पट्टी बांधे, दोनों हाथों की मुट्ठियों को भींचकर, दांत किटकिटाते हुए इन लड़ाकों को ये देश भूल सकता है? देश की राजनीति विस्मृत कर सकती है। राम जन्मभूमि आंदोलन इन्हें बिसरा सकता है? राजा राघवेंद्र सरकार और उनकी अयोध्या तो उसी समय से इन सबके लिए कृतज्ञ है, जब ये भीषण ठंड और भयानक प्रताड़ना के बाद भी वहां आ पहुंचे जहां ‘परिंदा भी पर नहीं मार सकता’ की कर्कश दम्भोक्ति गूंज रही थी।

एक कार सेवक गोली खाकर गिर गया, और अपने खून से सड़क पर सीताराम लिखा,

जी हां, इस दम्भोक्ति को चूरचूर करने वाले और कोई नहीं, कारसेवक थे। हमारे, आपके बीच के लोग। बाल, युवा, तरुण से लेकर प्रौढ़ औऱ बुजुर्ग भी। नर-नारी दोनों। हर जाति, पंथ, वर्ग के लोग। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक के लोग। वनवासी से लेकर नगरवासी तक। ये वो लोग थे जिनकी जुबां पर “रामकाज किये बिना मोहु कहां विश्राम’ के समवेत स्वर गूंज रहे थे। केसरिया पट्टी िसर पर कफन सी बांधे ये रणबांकुरे एक आह्वान पर घर से निकल पड़े थे। अपने आराध्य की उस ढांचे से मुक्ति के लिए जो गुलामी का प्रतीक था, जो हिंदू मानबिंदुओं के लिए लज्जित करता था। जो हिंदू अस्मिता पर प्रहार था। अपने आराध्य की इस ढांचे से मुक्ति और उनकी भव्य प्राण-प्रतिष्ठा का विचार लिए आंखों में रामजी के मंदिर का सपना लिए घर से चले थे। आज ये सब कारसेवक गदगद हैं, हों भी क्यों नहीं? जिस विचार, सपने को उन्होंने जिया था वो उनके जीते जी पूर्ण हो रहा है।

ऐसे समय कारसेवकों के योगदान और बलिदान को कैसे भूला जा सकता है? मीलों पैदल चलकर जो अयोध्या पहुंचे। पैरों के छालों की परवाह किए बगैर जो खेत-खेत, गांव-गली, पगडंडी से गुजरते हुए सरयू तट तक जा पहुंचे। भीषण ठंड औऱ भयानक प्रताड़ना से लड़ते-भिड़ते, बचते-बचाते जो सरयू की एक मुट्ठी रेत मुट्ठी में ले पाए। कारावास, कारागारों में कैद हुए। भूला जा सकता है ऐसे कारसेवकों को जो बर्बर पुलिसिया कार्रवाई का शिकार हुए? सिर पर, सीने पर जिनके निशाने दागकर गोलियां दागी गईं। जिनके हाथ-पैर बांधकर रेत की बोरियों के संग सरयू में बहा दिए गए। राम कोठारी, शरद कोठारी बंधुओं को कौन भूल सकता है? जो लौटकर घर नहीं पहुंच पाए। ऐसे एक नहीं, अनेक थे जो लौटकर फिर अपने गांव, नगर, कस्बे में नहीं आ पाए। कुछ का पता चला, कुछ आज तक लापता हैं। कुछ आज तक अपंग भी हैं, लेकिन उमंग अद्भुत है।

देश ही नहीं, दुनिया भी उस वक्त हतप्रभ रह गई जब एक धर्म निरपेक्ष व लोकतांत्रिक देश में एक विवादास्पद ढांचा ढहा दिया गया, बगैर किसी यंत्र-उपकरण के। अपने हाथ-पैर के दम पर। जोश और जुनून के बल पर। कारसेवक अपनी जिद पर ऐसे अड़े की 500 साल के गुलामी के प्रतीक उस ढांचे को जब तक जमीदोंज नहीं किया, पीछे नहीं हटे। हाथ-पैर टूटते रहे। सिर फूटते रहे। ऊपर से नीचे गिरते रहे, लेकिन वे तीन गुंबद जमीन पर ले ही आए जो देश और धर्म को पीढ़ियों से चिढ़ा रहे थे। इस मामले में कारसेवकों ने उनकी भी नहीं सुनी जो उन्हें लेकर गए थे। कैसे सुनते? दो साल पहले 1990 में इसी अयोध्या में उन्होंने अपनों की परबसता, प्रताड़ना देखी और राम नाम का उच्चारण करने वालों को गोलियां खाते देखा। जिनके हाथ मे कोई हथियार नहीं, सिर्फ भगवा ध्वज था उन्हें भी गोलियां खाते, दम तोड़ते देखा था। लिहाजा कैसे ‘प्रतीकात्मक कारसेवा’ कर लौटते? नतीजतन वो पुरुषार्थ कर गुजरे जिसका स्वप्न पीढ़ियों ने देखा था और इतिहास में दर्ज हो गए।

Load More Related Articles
Comments are closed.

Check Also

निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह भाटी को गिफ्ट में मिली 45 करोड़ की बुलेट प्रूफ कार

Share Tweet Send Ravindra Singh Bhati: राजस्थान में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद चर्चा में …