मुख्यमंत्री की संभावित पसंद को लेकर भाजपा की राज्य इकाई में भी नाटकीय मोड़ आ गया है। अगर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को फिर से सीएम बनाया जाता है तो पार्टी के कुछ नेता बागी हो सकते हैं।
मध्य प्रदेश में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम और ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस की कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल छा रहे हैं। सिंधिया के साथ उनके करीबी विधायकों ने भी इस्तीफे दे दिये हैं। ऐसे में एक बार फिर भाजपा सरकार बनाने की होड़ में है। लेकिन मुख्यमंत्री की संभावित पसंद को लेकर भाजपा की राज्य इकाई में भी नाटकीय मोड़ आ गया है। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को फिर से सीएम बनाया जाता है तो पार्टी के कुछ नेता बागी हो सकते हैं।
कांग्रेस के 22 विधायकों ने मंगलवार को स्पीकर एनपी प्रजापति को विधानसभा में अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसको ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने मंगलवार को एक बैठक बुलाई, जिसमें अटकलें लगाई गई थीं कि अगर कमालनाथ अपनी सरकार बचाने में विफल रहता है तो एक नए विधायक को मुख्य मंत्री के रूप में चुना जाएगा। भाजपा के एक वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि गोपाल भार्गव की जगह पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान को विधायक दल का प्रमुख चुने जाने की संभावना के विरोध के बाद विधायक दल की बैठक में कोई अन्य एजेंडे पर बात नहीं की गई।
बैठक के बाद, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद सिंह पटेल, चौहान, राज्य भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस के विधायकों द्वारा इस्तीफा दिये जाने के बाद राज्य में राजनीतिक माहौल पर चर्चा करने के लिए मुलाकात की। बीजेपी के एक नेता ने कहा, “जैसा कि चौहान ने मोर्चा संभाला और पार्टी में विभिन्न स्तरों पर उनसे सलाह ली गई, भोपाल को संदेश दिया गया कि उन्हें सतर्क रहना चाहिए।
चौहान के विरोधी एक अन्य भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी में एक भावना है कि अन्य नेताओं को एक मौका दिया जाना चाहिए क्योंकि चौहान का 13 वर्षों तक मुख्यमंत्री का कार्यकाल रहा है और 2018 में हार के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। हालांकि, राज्य के भाजपा मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर ने कहा, ”ऐसा कुछ नहीं है ये सिर्फ मीडिया की अटकलें हैं। बैठक का एजेंडा केवल राज्यसभा चुनाव था। किसी अन्य मुद्दे पर चर्चा नहीं की गई है।
बता दें फिलहाल 228 विधायकों वाली विधानसभा में कांग्रेस के पास अपने 114 विधायकों समेत 7 अन्य का समर्थन हासिल है, ऐसे में उनके पास 121 विधायक हैं। वहीं अगर इन इस्तीफा देने वाले 22 विधायकों की संख्या को विधासनभा की कुल सीटों में से घटा दें तो यह घटकर 206 रह जाएगी। ऐसे में बहुमत के लिए 104 सीटों की जरूरत होगी।