नागौद सिविल अस्पताल में डॉक्टर अमित की ‘गूढ़ लेखनी’ बनी मरीजों की परेशानी……

अमित मिश्रा/सतना।
प्रशासनिक लापरवाही एक बार फिर उजागर, साल 2024 में भी इन्हीं डॉक्टर का ऐसा ही पर्चा वायरल हुआ था।

सतना जिले के नागौद सिविल अस्पताल में एक बार फिर सरकारी लापरवाही की कहानी उजागर हुई है। यहां के डॉक्टर अमित सोनी का अजीब शब्दों में लिखा पर्चा न सिर्फ मरीजों के लिए पहेली बन गया है, बल्कि सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय भी बना हुआ है।
इस पर्चे पर लिखी दवाइयों के नाम न मरीज समझ पा रहे हैं, न मेडिकल स्टोर और न ही दूसरे डॉक्टर।
यह कोई पहली बार नहीं है, पहले भी डॉ. सोनी के इसी तरह के उलझाऊ पर्चे वायरल हुए हैं। मगर हर बार प्रशासन ने सिर्फ खानापूर्ति की, नोटिस दिया और मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया।
सरकार ने डॉक्टरों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि दवा का नाम हिंदी या साफ-सुथरी अंग्रेज़ी में लिखा जाए ताकि मरीजों को दवा लेने में परेशानी न हो। लेकिन नागौद अस्पताल में इन निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। मरीज बताते हैं कि डॉ. सोनी की लिखी दवाएं सिर्फ उनसे जुड़े मेडिकल स्टोर पर ही मिलती हैं। वहीं, उनकी लैब और पैथोलॉजी जांच भी उन्हीं के केंद्र में कराई जाती है। इससे मरीजों पर आर्थिक बोझ तो बढ़ता ही है, साथ ही स्वास्थ्य व्यवस्था की साख पर भी सवाल उठता है।
सूत्रों के मुताबिक, डॉ. सोनी की राजनीतिक और प्रशासनिक पकड़ इतनी मजबूत है कि उन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। बताया जाता है कि उनके दलाल पूरे नागौद क्षेत्र में सक्रिय हैं, वह मरीजों को बेहतर इलाज का लालच देकर उनकी क्लिनिक तक पहुंचाते हैं। लोग बताते हैं कि आशा कार्यकर्ता भी गर्भवती महिलाओं को उनके पास भेजती है, जिसके बाद सीजर मरीजों को डॉ. सोनी जिला अस्पताल की जगह बस स्टैंड स्थित एक अस्पताल में भेजते हैं, जहां डॉ. सोनी खुद सीजर ऑपरेशन कराते हैं। इसके लिए कुछ आशा कार्यकर्ताओं को मोटी रकम भी दी जाती है।
मजेदार बात यह है कि जब डॉ. सोनी बाहर जाते हैं, तो उनकी कुर्सी पर कभी-कभी स्वीपर तक मरीजों को देखने लगता है। बीते दिनों ऐसी खबरें भी जमकर वायरल हुई थी।
बीते साल 2024 मे जब ऐसा ही पर्चा वायरल हुआ था, तब डॉ. सोनी का सरकारी आवास खाली कराया गया था। मगर कुछ ही दिनों में उन्हें नया आवास दे दिया गया, जहां वह फिर से ‘इलाज’ कर रहे हैं।
लोगों का कहना है कि प्रशासन की नाकामी और डॉक्टर की पहुंच के चलते अब तक न तो कोई जांच हुई और न ही कोई ठोस कार्रवाई। नतीजतन मरीजों की परेशानी बढ़ रही है और अस्पताल की साख मिट्टी में मिल रही है।
सवाल वही है, जब डॉक्टर की पेन ही मरीज की सबसे बड़ी दुश्मन बन जाए, तो फिर इलाज की उम्मीद किससे की जाए? प्रशासन की इस ‘पर्चा पहेली’ पर चुप्पी आखिर कब टूटेगी?
