“मामा का घर” : सूबे का सरदार न बन पाने की टीस अब तक बरकरार…

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने अपने सरकारी मकान के बाहर टांगी तख्ती-मामा का घर…
• नित नए बयानों से “मामा’ खींच रहे केंद्रीय नेतृत्व का ध्यान, सीएम न बनने का अब तक मलाल
• दिल्ली दरबार को अब तक दे चुके हैं आधा दर्जन बयानों से जवाब, फिर बोले- “मामा-भैया’ सीएम से अहम
• “दिल्ली नहीं जाऊंगा’ के बाद शीर्ष नेतृत्व को फिर संदेश- यहीं जीऊंगा, यहीं मरूंगा
मामा भले ही गुहार लगाते रहें कि कहीं नहीं जाऊंगा, यहीं धूनी रमाऊंगा। धूनी रमाने की पूरी तैयारी भी थी। धूने के बाहर उन्होंने “चिमटा’ भी गाड़ दिया था और दिल्ली को बता दिया था कि ये अखंड, चेतन्य, “शिव धूना’ है जो 16-17 बरस से अनवरत प्रज्वलित है। धूने से “शिव सम्प्रदाय’ को बहुत उम्मीदें भी थीं, लेकिन वक्त की विघ्न, बाधा ऐसी आई कि “जलते धूने और रमते जोगी’ की उम्मीदें धूलधुसरित हो गईं। जैसे किसी ने घड़ा भर पानी फेंककर धूने को बुझा दिया हो, लेकिन जैसे चूल्हे की अग्नि शांत होने के बाद भी उसमें तपन बरकरार रहती है, वैसे ही इस धूने की राख के नीचे अंगार शेष है।
सूबे की सरदारी नहीं मिलने का मलाल ‘शिव सम्प्रदाय’ को तो है ही। इस सम्प्रदाय से जुड़े ‘नंदीगणों’ के भविष्य की दशा-दिशा के समक्ष गहरी धुंध छा गई है। ‘मोहन’ की ‘सखा मंडली’ में इसका असर भी नजर आ गया। ‘शिव सम्प्रदाय’ के कई ‘नामचीन गादीपति’ ही इस मंडली से बाहर कर दिए गए। ‘मोहन मंडली’ में चुन-चुनकर वे बाहर कर दिए गए या लिए ही नहीं गए जिनका गादीपति होना तय ही था। सूबे की सूबेदारी से दूर रहने की टीस शिव सम्प्रदाय से ज्यादा गहरी स्वयं ‘शिव’ को हो रही है। वे भूल ही नहीं पा रहे हैं कि ‘लब तक आते-आते हाथों से कैसे सागर छूट जाता है?’ कहां तो राजतिलक की तैयारी थी और कहां वनवास मिल गया। राजसी राज्यारोहण की तैयारियों के बीच ‘दिल्ली दरबार’ ने ‘वल्कल वस्त्र’ पहना दिए और राज सिंहासन पर अपनी ‘खड़ाऊ’ रख दी। अब ये वनवास कितने बरस का होगा? कोई नहीं जानता। 14 बरस का या उससे कम 5 बरस का?
वनवास का ठिकाना “मामा का घर’
‘मामा का घर’ अब मामा का वनवास का ठिकाना हो गया है। ये ठिकाना वनवासी राम सा अपने राज्य से बाहर चित्रकूट में नहीं, राज्य की परिधि में ही बन गया है, वो भी राजधानी में ही। श्यामला हिल्स का वैभव छोड़ अब ये ठिकाना ताल नगरी भोपाल के लिंक रोड पर बन गया है। ठिकाने का पता है-बी-8-74 बंगला। नए पते-ठिकाने पर पहुंचते ही मामा का न्योता पहुंच गया है। ये न्योता उन्होंने 2 जनवरी को अपने कर्म क्षेत्र बुधनी में सार्वजनिक रूप से दिया। उन्होंने दो टूक कहा- पता बदल गया, लेकिन मामा का घर तो मामा का ही घर होता है। इस घर के दरवाजे सबके लिए खुले रहेंगे। कोई भी काम हो निःसंकोच घर आ जाना।