सतना की दुर्दशा पर जनाक्रोश: हमें हमारा सुकून लौटाओ, नहीं चाहिए ऐसा ‘विकास’……….

अमित मिश्रा। सतना, मध्यप्रदेश:
सतना शहर आज ऐसी दुर्दशा से गुजर रहा है, जहां ‘विकास’ शब्द का अर्थ ही बदल गया है। जनता त्रस्त है, प्रशासन मौन है और जनप्रतिनिधि खोखले बयानों के सहारे अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। सतना को स्मार्ट सिटी योजना में शामिल किया गया, लेकिन इस योजना की आड़ में शहर की जो हालत हुई है, वह किसी त्रासदी से कम नहीं।

कभी सुकून से जीने वाला शहर, जहां लोग खुले आसमान के नीचे चैन की सांस लेते थे, आज धूल, गड्ढों, और अव्यवस्था से घिरा हुआ है। सतना की जनता पूछ रही है हमें स्मार्ट सिटी नहीं चाहिए अगर उसकी कीमत हमारे जीवन की शांति है। हमें चाहिए हमारा पुराना सतना, भले ही वह कम सुविधाओं वाला था, लेकिन जीवन वहां सरल और सुरक्षित था।

बच्चों की पढ़ाई से लेकर मरीजों की जान पर बन आया है अब यह विकास।
शहर की दुर्दशा का सबसे गहरा असर बच्चों और मरीजों पर पड़ा है। कई स्कूलों के रास्ते जर्जर हो चुके हैं, जिनमें चलना तक जोखिम भरा हो गया है। अस्पतालों तक पहुंचने में लोग डरते हैं, क्योंकि रास्ते इतने बदहाल हैं कि एम्बुलेंस भी फंस जाती है। मरीज समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाते, और कई बार जान पर बन आती है।
शहर में हर ओर खुदाई हो रही है। सड़कों पर गड्ढे हैं, धूल उड़ती है, पानी जमा होता है और कोई भी काम समय पर पूरा नहीं होता। न कोई सूचना दी जाती है कि कहां काम चल रहा है, न कोई वैकल्पिक मार्ग सुझाया जाता है। आम आदमी हर दिन नए रास्ते खोजने पर मजबूर है, और कई बार पूरे शहर का चक्कर काटने के बाद भी मंजिल तक नहीं पहुंच पाता।
महिलाएं दोपहिया वाहन लेकर निकलने से डरती हैं, बच्चे पैदल निकलने से कतराते हैं और बुजुर्ग घरों में कैद हो गए हैं। सतना की जनता अब सिर्फ जी नहीं रही, वह हर दिन ‘सर्वाइवल’ कर रही है।
सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि जिन्हें जनता ने चुना, वही आज आंखें मूंदे बैठे हैं। न कोई जनप्रतिनिधि सड़कों पर उतरकर सच्चाई देखना चाहता है, न कोई अधिकारी धरातल पर कार्यवाही करता नजर आता है। सब सिर्फ अखबारों और विज्ञापनों में विकास की तस्वीरें दिखा रहे हैं।
जनता जानना चाहती है अगर आप ही नहीं सुनेंगे तो हम किसके पास जाएं? क्या आपके लिए चुनाव सिर्फ टिकट का मुद्दा है, जनसेवा नहीं? क्या आपको जनता की तकलीफों से कोई लेना-देना नहीं?
जनता का आह्वान है हमें सुनो, हमें देखो, जनता अब हाथ जोड़कर नहीं, अब आवाज उठाकर कहना चाहती है, हमें हमारा शहर लौटा दो, हमें नहीं चाहिए ऐसा विकास जो हमारी जिंदगी बर्बाद कर दे, जनता अब सजग हो रही है, और यह प्रशासन व जनप्रतिनिधियों के लिए चेतावनी है, अगर अब भी नहीं जागे, तो आने वाले चुनाव में जवाब जरूर मिलेगा……
जनता यह भी समझ चुकी है कि केवल नेता ही नहीं, वह स्वयं भी दोषी है.. चुप रहकर, सहन करके, विरोध न करके, लेकिन अब वह तैयार है, आवाज उठाने के लिए,
प्रधानमंत्री मोदी की 100 स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल सतना आज बदहाली की मिसाल बन गया है। जिस विकास के सपने दिखाए गए थे, वह आज जनता के लिए दुःस्वप्न बन गए हैं। अगर प्रशासन और जनप्रतिनिधि अब भी सतर्क नहीं हुए, तो यह समय इतिहास में एक काले अध्याय की तरह दर्ज हो जाएगा।
जनता का श्रीमान प्रशासनिक अधिकारियों और माननीय जनप्रतिनिधियों से अनुरोध है.. अब भी समय है, शहर को बचाइए, सिर्फ प्लानिंग नहीं, क्रियान्वयन चाहिए। जनता को अब सुकून चाहिए, दिखावा नहीं…….