सतना में अवैध लकड़ी के टालों पर एनजीटी सख्त: नगर निगम से मांगा 6 हफ्ते में जवाब..

16 साल पहले कलेक्टर ने दिए थे हटाने के आदेश…..

सतना नगर निगम क्षेत्र में अवैध रूप से चल रहे लकड़ी के टालों के खिलाफ राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने सख्त रुख अपनाया है। एनजीटी की मध्य क्षेत्रीय पीठ (भोपाल) ने सतना नगर निगम से इस संबंध में 6 हफ्तों के भीतर विस्तृत जवाब प्रस्तुत करने को कहा है। मामला 15 साल पुराना है, जब तत्कालीन कलेक्टर ने आवासीय क्षेत्रों से ऐसे टालों को हटाने का आदेश दिया था, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
शिकायतकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट महेंद्र सिंह सोलंकी ने एनजीटी को बताया कि सतना शहर के आवासीय इलाकों में नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए लकड़ी के टाल संचालित हो रहे हैं। इन टालों में भारी मशीनों के माध्यम से चिराई होती है, जिससे लगातार धूल, धुआं और ध्वनि प्रदूषण फैलता है। चौहान का कहना है कि स्थानीय रहवासियों को दिन-रात इन मशीनों की आवाज और धूल से सांस लेने में तकलीफ तक हो रही है।

एनजीटी ने तलब किया जवाब, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में हुई सुनवाई
इस मामले में एनजीटी की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई, जिसमें न्यायमूर्ति शिवकुमार सिंह ने नगर निगम सतना से 6 सप्ताह में जवाब मांगा है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यदि पुराने आदेशों का पालन नहीं हुआ है, तो जिम्मेदारों की जवाबदेही तय की जाएगी।

शहर में बिना मानकों के टाल चल रहे है।
बिना मानकों के टाल, पर्यावरणीय खतरे की आशंका
सोलंकी ने अपने आवेदन में सवाल उठाया है कि जब इन टालों को कोई विधिवत अनुमति प्राप्त नहीं है, तो इन तक लकड़ी की आपूर्ति कैसे हो रही है? क्या इसकी जांच हुई है? बिना मानकों के चल रही इन इकाइयों से जहां पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, वहीं आसपास रहने वालों का जीवन भी संकट में है।
क्या था 16 साल पुराना आदेश?
साल 2009 में सतना के तत्कालीन कलेक्टर सुखबीर सिंह ने आदेश दिया था कि शहर में स्थित शॉ मिल और टाल आवासीय इलाकों से हटाए जाएं। उन्होंने चेताया था कि घनी बस्तियों में संचालित ये टाल मानवीय जीवन के लिए खतरनाक हैं, विशेषकर आगजनी जैसी घटनाओं के दौरान। कलेक्टर के आदेश के बावजूद नगर निगम की निष्क्रियता से यह स्थिति अब और गंभीर हो गई है।