सतना के सरकारी अस्पताल में ‘मृत’ बताए बच्चे ने प्राइवेट हॉस्पिटल में ली सांस:
अमित मिश्रा/सतना।

सरकारी सिस्टम फेल: मृत बताकर मार देते मासूम को, पिता की सूझबूझ से बची जान…..

जिला अस्पताल की लापरवाही ने एक बार फिर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की कलई खोल दी। प्रशासन की लापरवाही और सिस्टम की नाकामी से एक मासूम की जान जाते-जाते बची। डॉक्टरों ने सोनोग्राफी में गर्भस्थ शिशु को मृत बताकर तत्काल अबॉर्शन कराने का दबाव बनाया, लेकिन परिजनों ने सूझबूझ दिखाई और बच्चे की जान बच गई। यदि परिवार सरकारी रिपोर्ट पर आंख मूंदकर भरोसा कर लेता तो एक निर्दोष नवजात की जान असमय ही चली जाती और यह एक ‘मेडिकल मर्डर’ बन जाता।

पूरा मामला, रामपुर बघेलान क्षेत्र के चकेरा गांव निवासी दुर्गा द्विवेदी (24) पत्नी राहुल द्विवेदी को सोमवार मंगलवार की दरम्यानी रात करीब 2 बजे प्रसव पीड़ा पर अमरपाटन सिविल अस्पताल ले जाया गया। हालत गंभीर देख सुबह 4:30 बजे सतना जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया। सुबह 6 बजे महिला को भर्ती कर सोनोग्राफी कराई गई, जिसमें डॉक्टरों ने बताया कि गर्भस्थ शिशु की पल्स नहीं चल रही है और उसकी गर्भ में ही मौत हो चुकी है। डॉक्टरों ने तत्काल अबॉर्शन कराने का दबाव बनाते हुए कहा कि देर हुई तो मां की जान भी खतरे में पड़ सकती है।
मासूम व सुंदर नवजात ने लिया जन्म।

डॉक्टरों के कहने पर भी महिला के पति राहुल को डॉक्टरों की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं हुआ। जब अबॉर्शन से पहले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कराने को कहा गया, राहुल को आशंका हुई कि कहीं कोई बड़ी लापरवाही न हो रही हो। राहुल ने हिम्मत दिखाते हुए हस्ताक्षर करने से इंकार किया और तुरंत पत्नी को जिला अस्पताल से निजी अस्पताल ले जाने का निर्णय लिया।
राहुल ने पत्नी को सतना के निजी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां दोबारा सोनोग्राफी कराई गई। रिपोर्ट में सामने आया कि बच्चा गर्भ में पूरी तरह जीवित है। डॉक्टरों ने तत्काल भर्ती कर सीजर ऑपरेशन किया और मंगलवार को महिला ने 3 किलो 800 ग्राम के स्वस्थ शिशु को जन्म दिया। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिसे सरकारी अस्पताल मृत बता रहा था, वह बच्चा स्वस्थ पैदा हुआ। यदि परिजन डॉक्टरों की सलाह मानकर अबॉर्शन करवा देते, तो यह एक निर्दोष मासूम की ‘मेडिकल हत्या’ होती।परिजनों और ग्रामीणों ने जिला अस्पताल प्रशासन पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की है। ग्रामीणों ने कहा कि अगर राहुल ने सूझबूझ न दिखाई होती, तो आज परिवार में मातम पसरा होता। आशा कार्यकर्ता शीला तिवारी ने बताया कि उन्होंने महिला को सिविल अस्पताल पहुंचाया था, लेकिन जिला अस्पताल में लापरवाही के चलते मामला बिगड़ गया।
प्रशासन का जवाब: मामले को लेकर सीएमएचओ ने कहा कि हमें इसकी जानकारी मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से मिली है। मामले की विस्तृत जांच कराई जाएगी और दोषी पाए जाने पर संबंधितों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।यह मामला सरकारी सिस्टम की खामियों और डॉक्टरों की लापरवाह कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। एक गलत रिपोर्ट और जल्दबाजी में लिया गया फैसला एक मासूम की जान ले सकता था। अब जरूरी है कि ऐसे मामलों में जवाबदेही तय हो ताकि सरकारी अस्पतालों में इलाज के नाम पर मासूम जिंदगियों से खिलवाड़ बंद हो सके।
राहुल द्विवेदी नवजात शिशु के पिता