राष्ट्र और समाज के लिए समर्पित जीवन: शंकर प्रसाद जी को नमन….
अमित मिश्रा/सतना।

🕯️ श्रद्धांजलि 🕯️
राष्ट्र और समाज की सेवा जिनकी हर श्वास का संकल्प रही, ऐसे श्रद्धेय शंकर प्रसाद जी अब हमारे बीच नहीं हैं, पर उनका कार्य और विचार हम सभी के लिए अमूल्य धरोहर बन गए हैं।
13 जुलाई 1934 को रीवा में जन्मे शंकर प्रसाद जी ने शिक्षा, संगठन और सेवा को जीवन का ध्येय बनाया। IIT खड़गपुर से एमटेक में स्वर्णपदक प्राप्त कर भारतीय रेलवे सेवा में कार्य करने के बावजूद उन्होंने पिताजी के कहने पर नौकरी छोड़, समाजसेवा और शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जिला, विभाग और महाकौशल प्रांत संघचालक रहते हुए उन्होंने राष्ट्र निर्माण की चेतना से नई पीढ़ी को संस्कारित किया। सरल भाषा में गूढ़ विषयों की व्याख्या कर प्रेरणा देने वाले शंकर प्रसाद जी ने संगठन, अनुशासन और सेवा को जीवन में सर्वोच्च रखा।
रीवा का सरस्वती शिशु मंदिर कृष्णनगर और सतना का विद्यापीठ उतैली उनके सपनों का साकार रूप हैं, जिनके माध्यम से उन्होंने शिक्षा में संस्कारों और विज्ञान का अद्भुत समन्वय किया।
सतना नगरपालिका के अध्यक्ष रहते हुए भी उन्होंने स्वच्छ राजनीति का उदाहरण प्रस्तुत किया। नानाजी देशमुख के साथ ग्राम विकास और दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट के कार्यों में योगदान दिया। ‘संगीत भारती’, ‘भारत विकास परिषद’, ‘मानस संघ रामवन’ जैसी संस्थाओं के माध्यम से समाज को सकारात्मक दिशा देने में उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा।
15 जुलाई 2015 को यह प्रेरणा का दीपक बुझ गया, पर उनके विचार और कार्य आज भी हमें कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासन और राष्ट्रसेवा की प्रेरणा देते हैं। उनका जीवन सादगी, ईमानदारी और संकल्प का वह दीप है, जो समाज में सकारात्मक परिवर्तन की राह दिखाता है।
विनम्र श्रद्धांजलि…..
आपकी स्मृतियां और आदर्श सदैव हमारे मार्गदर्शन का दीप बने रहेंगे।