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नीले सागर से नवयुग……

भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से विस्तार कर रही है, और इसमें समुद्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। समुद्र न केवल व्यापार और परिवहन के लिए आवश्यक है, बल्कि ये अपार संसाधनों का भंडार भी हैं। इसी कारण भारत ‘ब्लू इकोनॉमी’ यानी समुद्र आधारित आर्थिक विकास की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने भी ब्लू इकोनॉमी को ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स’ का एक अनिवार्य घटक माना है, जो सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करते हुए समुद्री संसाधनों का उपयोग करने पर बल देता है। भारत अपनी विशाल समुद्री सीमा और सामरिक स्थिति के कारण इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं रखता है, और इसे वैश्विक स्तर पर एक समुद्री शक्ति के रूप में उभरने की आवश्यकता है।
ब्लू इकोनॉमी का मूल अर्थ समुद्री संसाधनों के सतत और लाभदायक उपयोग से है, ताकि आर्थिक समृद्धि और पर्यावरणीय संतुलन दोनों बनाए रखे जा सके। यह पारंपरिक समुद्री गतिविधियों जैसे मत्स्य पालन, जहाजरानी और पर्यटन से लेकर आधुनिक अवधारणाओं जैसे अपतटीय ऊर्जा, गहरे समुद्री अन्वेषण और जैव प्रौद्योगिकी तक फैली हुई है। भारत के लिए ब्लू इकोनॉमी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी 7,500 किलोमीटर लंबी तटीय सीमा, 12 प्रमुख और 200 से अधिक छोटे बंदरगाह, और विशाल विशेष आर्थिक क्षेत्र लगभग 2.02 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसके अतिरिक्त, भारत हिंद महासागर के केंद्र में स्थित है, जिससे इसकी रणनीतिक स्थिति और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
भारत का 90% से अधिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार समुद्री मार्गों के माध्यम से होता है, जिससे यह वैश्विक सप्लाई चेन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनता जा रहा है। सागरमाला परियोजना के तहत भारतीय बंदरगाहों को आधुनिक बनाया जा रहा है, जिससे लॉजिस्टिक्स की लागत में कमी आएगी और व्यापार में वृद्धि होगी। भारत शिपबिल्डिंग और शिप रिपेयरिंग उद्योग को भी बढ़ावा दे रहा है, जिससे रोजगार और तकनीकी उन्नति के अवसर पैदा होंगे। भारत मत्स्य उत्पादन में विश्व में तीसरे स्थान पर है और सबसे बड़ा झींगा निर्यातक है। मत्स्य पालन भारत के तटीय समुदायों की आजीविका का मुख्य स्रोत है और इसके मूल्य में 2025 तक 15 बिलियन डॉलर तक की वृद्धि की संभावना है। भारत सस्टेनेबल फिशिंग प्रैक्टिसेस को अपनाकर इस क्षेत्र को और अधिक लाभदायक बना सकता है। गोवा, अंडमान-निकोबार, केरल और लक्षद्वीप जैसे स्थानों में ब्लू टूरिज्म की अत्यधिक संभावनाएं हैं। क्रूज़ टूरिज्म, स्कूबा डाइविंग, और वाटर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देकर भारत अपने तटीय राज्यों की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है।
भारत सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है, लेकिन अपतटीय पवन ऊर्जा और ज्वारीय ऊर्जा का उपयोग अभी सीमित है। यदि भारत इस क्षेत्र में निवेश करता है, तो यह उसकी ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ करने के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में भी मदद करेगा। समुद्र में कई प्रकार के जीव-जंतु और वनस्पतियां पाई जाती हैं, जिनका उपयोग फार्मास्युटिकल्स, कॉस्मेटिक और जैविक उत्पादों में किया जा सकता है। गहरे समुद्री अनुसंधान से कैंसर, हृदय रोग और अन्य बीमारियों के इलाज के लिए नई दवाओं की खोज हो सकती है।
समुद्र की गहराइयों में कोबाल्ट, निकल, मैंगनीज और दुर्लभ खनिजों का विशाल भंडार छिपा हुआ है, जिनका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स और बैटरी निर्माण में किया जा सकता है। भारत ‘डीप ओशन मिशन’ के तहत समुद्री संसाधनों की खोज कर रहा है, जिससे भविष्य में खनिज संसाधनों पर निर्भरता को कम किया जा सके। भारत सरकार ने ब्लू इकोनॉमी के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। ‘ब्लू इकोनॉमी विजन 2030’ के तहत भारत सतत समुद्री विकास की दिशा में कार्य कर रहा है। इसके अलावा, भारत सागरमाला परियोजना, मत्स्य पालन अवसंरचना विकास योजना, राष्ट्रीय समुद्री नीति और डीप ओशन मिशन के माध्यम से समुद्री विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है।
भारत आई एम ओ (International Maritime Organization) और आईओआरए (Indian Ocean Rim Association) जैसे संगठनों में सक्रिय भूमिका निभा रहा है, ताकि वैश्विक समुद्री नीतियों में योगदान किया जा सके। हालांकि ब्लू इकोनॉमी की संभावनाएं अपार हैं, लेकिन इसके सामने कई चुनौतियां भी हैं। सबसे बड़ी समस्या समुद्री प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन है। समुद्रों में प्लास्टिक कचरा, तेल रिसाव, और तटीय क्षेत्रों में अत्यधिक शहरीकरण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं। भारत को समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सख्त कानूनों और टिकाऊ नीतियों की आवश्यकता है।
दूसरी चुनौती तकनीकी विकास और निवेश की कमी है। भारत को अपतटीय ऊर्जा, गहरे समुद्री अन्वेषण और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की जरूरत है। सरकार को नीति आयोग और निजी क्षेत्र के सहयोग से समुद्री अनुसंधान एवं विकास को प्राथमिकता देनी होगी तीसरी चुनौती सुरक्षा और रणनीतिक जोखिम है। हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति, समुद्री डकैती और अवैध मछली पकड़ने जैसी समस्याएं ब्लू इकोनॉमी के विकास को प्रभावित कर सकती हैं। भारत को अपनी नौसेना और तटरक्षक बल को और अधिक सशक्त बनाना होगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि समुद्री संसाधनों का दोहन सुरक्षित और सुव्यवस्थित तरीके से हो।

भारत के लिए ब्लू इकोनॉमी एक आर्थिक क्रांति साबित हो सकती है, जिससे सतत विकास, रोजगार वृद्धि और पर्यावरणीय संतुलन को बढ़ावा मिलेगा। भारत को अपने समुद्री संसाधनों का बुद्धिमत्तापूर्वक और स्थायी रूप से उपयोग करना होगा, ताकि यह 21वीं सदी की वैश्विक समुद्री अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख केंद्र बन सके। सरकार, उद्योग और शोध संस्थानों के सहयोग से यदि भारत सही रणनीति अपनाता है, तो यह ब्लू इकोनॉमी को देश की आर्थिक रीढ़ बना सकता है और वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में उभर सकता है।

सचिन त्रिपाठी
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है। विविध विषयों में लिखते हैं।)

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