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सतना जिला अस्पताल में एड्स संक्रमित खून का खेल, चार मासूमों की जिंदगी दांव पर….

अमित मिश्रा/सतना।

लापरवाही के जिम्मेदारों पर कब होगी सख्त कार्रवाई?

सतना जिला अस्पताल से सामने आया यह मामला केवल एक चिकित्सकीय त्रुटि नहीं, बल्कि पूरे सरकारी स्वास्थ्य तंत्र पर लगा एक गहरा और शर्मनाक दाग है, थैलेसीमिया से पीड़ित 8 से 11 वर्ष के चार मासूम बच्चों को एचआईवी संक्रमित खून चढ़ा दिया गया। यह गंभीर लापरवाही चार महीने तक सिस्टम की आंखों से ओझल रही। सवाल यह नहीं है कि घटना हुई, सवाल यह है कि इतनी बड़ी चूक कैसे हुई और इसके जिम्मेदार अब तक क्यों सुरक्षित हैं?

आईसीटीसी जांच में साफ हुआ कि ये सभी बच्चे पहले एचआईवी नेगेटिव थे, लेकिन नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूजन के बाद उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। बच्चों के माता-पिता एचआईवी नेगेटिव पाए गए हैं, जिससे संक्रमण का एकमात्र संभावित स्रोत ब्लड ट्रांसफ्यूजन ही माना जा रहा है। यह सीधा आरोप ब्लड बैंक की कार्यप्रणाली, डोनर स्क्रीनिंग, रिकॉर्ड संधारण और निगरानी तंत्र पर जाता है।

ब्लड बैंक प्रबंधन विंडो पीरियड, बार-बार ट्रांसफ्यूजन और अलग-अलग जगहों से ब्लड मिलने का तर्क देकर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहा है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह तर्क मासूम बच्चों की जिंदगी से बड़ा हो सकता है? यदि जांच किट की गुणवत्ता, डोनर की सही पहचान, मोबाइल नंबर और पते का सत्यापन ईमानदारी से किया गया होता, तो क्या यह भयावह त्रासदी टाली नहीं जा सकती थी?

सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि जांच के दौरान कई डोनरों के मोबाइल नंबर गलत और पते अधूरे पाए गए। इससे यह साफ होता है कि ब्लड डोनेशन जैसे अत्यंत संवेदनशील कार्य में भी केवल खानापूर्ति की जा रही है। यदि आज एचआईवी पॉजिटिव डोनरों को ट्रेस नहीं किया जा पा रहा, तो कल किसी और मरीज की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा?

स्थानीय लोगों और अस्पताल से जुड़े कर्मचारियों के बीच यह चर्चा भी तेज है कि सतना ब्लड बैंक में ब्लड डोनेशन कार्यक्रम केवल दिखावे तक सीमित रह गए हैं। आरोप हैं कि ब्लड बैंक का एक बड़ा हिस्सा ब्लड की दलाली में भी संलिप्त है। दबी जुबान में अस्पताल के लोग बताते हैं कि ब्लड विभाग के जिम्मेदार अधिकारी अक्सर प्रभावशाली और रसूखदार लोगों की सेवा में लगे रहते हैं। उनके कहने पर ब्लड का “अरेंजमेंट” तुरंत हो जाता है, जबकि गरीब और जरूरतमंद मरीजों को ब्लड के लिए घंटों, दिनों तक भटकना पड़ता है।

अब यह आशंका भी गहराती जा रही है कि संक्रमित ब्लड अन्य मरीजों, गर्भवती महिलाओं या गंभीर रोगियों को भी चढ़ाया गया हो सकता है। यदि समय रहते एचआईवी पॉजिटिव डोनरों की पहचान नहीं की गई, तो भविष्य में और भी जिंदगियां खतरे में पड़ सकती हैं। यह मामला केवल बच्चों तक सीमित न रहकर एक बड़े स्वास्थ्य संकट में बदल सकता है।

डिप्टी सीएम एवं स्वास्थ्य मंत्री ने जांच के निर्देश दिए हैं, कलेक्टर ने रिपोर्ट मांगी है, लेकिन जनता पूछ रही है, जांच कब तक चलेगी और कार्रवाई कब होगी? क्या हमेशा की तरह यह मामला भी फाइलों में दबा दिया जाएगा, या फिर दोषी अधिकारियों, ब्लड बैंक प्रभारी और लापरवाह स्टाफ पर सख्त कार्रवाई होगी?

समाज अब जवाब चाहता है,

केवल जांच नहीं, बल्कि निलंबन, बर्खास्तगी, लाइसेंस रद्द करने और आपराधिक प्रकरण दर्ज करने जैसी कठोर कार्रवाई की मांग उठ रही है।
जब तक जिम्मेदारों को कड़ी सजा नहीं मिलेगी, तब तक ऐसी लापरवाहियां दोहराई जाती रहेंगी, मासूम बच्चों की जिंदगी की कीमत सिर्फ आश्वासन नहीं, बल्कि जवाबदेही और न्याय है, और यह प्रशासन को हर हाल में साबित करना होगा……

बाइट- डॉक्टर देवेंद्र पटेल ब्लड बैंक प्रभारी….

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