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महाराजा के आगे क्या मामा ठीक से बिछा पाएंगे राजनीति की बिसात..?
… कहते हैं ना… गैरों में कहां दम था मुझे तो अपनों ने लूटा, मेरी कश्ती वहीं डूबी जहां पानी कम था…
सतना। कांग्रेस मध्य प्रदेश में बहुमत में थी लेकिन विपक्ष भी इतना कमजोर नहीं था कि बहुमत जुटाने के लिए उसको भारी भरकम विधायक चाहिए हों। उसको तो थोड़ा सा मौका मिला और टूट पड़े। पहले के जमाने में राजा दूसरे कमजोर राजा के राज्य में हमला बोलकर कब्जा जमा लेता था। यह इतिहास गवाह है। लेकिन इस बार भाजपा ने महराजा पर डोरे डाले और निशाना साध लिया। राजनीति कूटनीति से महराजा सिंधिया भाजपा के चहेते हुए और राजा दिग्विजय के कंधे पर अस्त्र-शस्त्र रखकर भाजपा ने कांग्रेस के किले को भेदा और फिर राजपाठ पर कब्जा कर लिया। इस बार पौराणिक कथाओं पर आधारित कूटनीतिक युद्ध नहीं बल्कि राजनीतिक युद्ध और चाल थी, लेकिन तरीका वही अपना है जो राजा महराजा अपनाते थे।
कांग्रेस 15 वर्ष के वनवास के बाद सत्ता में लौटी लेकिन भाजपा नेता कांग्रेस को जल्दी ही सत्ता से पदमुक्त कराने की बात ऐसे ही नहीं कह रहे थे। उन्होंने इस बात की जानकारी जुटा ली थी कि कांग्रेस में कमजोर कड़ी कौन और कैसे हैं। उसे किस तरह का लालच दिया जाए कि वह कांग्रेस से मोह त्याग कर भाजपा की गोदी में बैठ जाए। भाजपा को जो करना था उसने किया और अपने प्रयास पर सफल भी हो गई।
लेकिन सवाल पर सवाल खड़े हो रहे
15 वर्ष बाद सत्ता पर लौटी कांग्रेस 15 महीने में ही सत्ता से हट गई इसको लेकर पार्टी के भीतर बड़े-बड़े सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि क्या सचमुच राजा मतलब दिग्विजय सिंह और महाराजा मतलब ज्योतिरादित्य सिंधिया की लड़ाई में कांग्रेस की नाव डूब गई? इस बात को सभी लोग सही मानते है लेकिन प्रमाण के तौर पर कोई कुछ नहीं बता पा रहा है। राजनैतिक गलियारे से जो बात सामने आ रही है वह यह है कि कांग्रेस जब सत्ता पर लौटी और मंत्रिमंडल का गठन हुआ, उसी दिन से सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी। कहा जा रहा है कि कांग्रेस जब चुनाव जीता तब पार्टी के भीतर चर्चा थी कि 4-5 बार से जो लोग लगातार चुनाव जीत रहे हैं, उन्हें मंत्री बनाया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ जो लोग दो बार जीते उन्हें सत्ता की चाशनी दे दी गई और गद्दी भी।
विंध्य में कांग्रेसी का प्रदर्शन:
पूरे मध्यप्रदेश में चुनाव के दौरान विंध्य में कांग्रेस का प्रदर्शन आशा के अनुसार नहीं था लेकिन बिसाहू लाल सिंह जो पांचवीं बार जीते थे, उनको मंत्री ना बनाकर कमलेश्वर पटेल को मंत्री का दर्जा दे दिया। केपी सिंह, लक्ष्मण सिंह, इंदल सिंह कंसाना और पूरे मध्यप्रदेश में सिर्फ एक सिख विधायक हरदीप सिंह डंक को जानबूझ कर नजर अंदाज क्यों किया गया? यह सवाल भी पार्टी के भीतर आज बड़ी शिद्दत के साथ पूछा जा रहा है। लेकिन जवाब देने वाले लापता है। दबी जुबान से तो आरोप लग रहे हैं कि मुख्यमंत्री भले ही कमलनाथ रहे हो लेकिन पावर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के हाथ में था। यह भी पूछा जा रहा है कि 2 बार के जीते विधायक नीलांशु चतुर्वेदी फुदे लाल मार्को भी थे। फिर इन्हें मंत्री क्यों नहीं बनाया गया? उधर कमलेश्वर पटेल को मंत्री बनाकर पंचायत ग्रामीण विकास जैसा बड़ा विभाग क्या सिर्फ इसलिए दिया गया की उनके कंधे पर अस्त्र-शस्त्र रख पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की राजनीति को नेस्तनाबूद कर दिया जाए। याद रहे कि कभी कांग्रेस की सरकार में यही विभाग पूर्व नेता प्रतिपक्ष के पास था जो आज कमलेश्वर पटेल को सौंपा गया है।
आखिर अजय सिंह राहुल की उपेक्षा क्यों?
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने के बाद मंत्रिमंडल का जिस तरह से गठन हुआ उसको देखकर साफ लग रहा था कि कांग्रेस के कुछ ऐसे घिसे पिटे नेताओं के इशारे पर कुछ अच्छे नेताओं को ठिकाने लगाने का काम चल रहा था। विंध्य के राजनैतिक गलियारों में एक सवाल यह भी मुंह उठाए घूम रहा है कि क्या अजय सिंह राहुल को जानबूझ के उपेक्षित और अपमानित करने का प्रयास किया गया और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। जवाब न बाहर है न भीतर। मसलन न कांग्रेस के बड़े नेता दे पा रहे हैं और न छोटे। बात मुद्दे की यह भी है कि विंध्य और बुंदेलखंड में कांग्रेस को मजबूत करने की कोई कोशिश नहीं की गई। यह भी कहा जा रहा है कि मौजूदा हालात में प्रथम पारी में फूल सिंह बरैया को होना चाहिए क्योंकि ज्यादातर उपचुनाव ग्वालियर चंबल संभाग में है पूरे प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को चलता करने का जिम्मेदार जिसे ठहराया जा रहा है वह जगजाहिर है। लोग भले ही ज्योतिराज सिंधिया का चर्चा करें लेकिन भारतीय जनता पार्टी में कमजोर कड़ी सिंधिया को ही माना और उसने मैदान मार लिया।
ठगा महसूस कर रहा कार्यकर्ता:
बड़े नेताओं की बड़ी राजनीति बड़ा पैसा बड़ी कुर्सी बड़ा ऐशो आराम लेकिन यह सब कुछ मिलता है जमीनी कार्यकर्ता की मेहनत और मशक्कत से। आज इस कार्यकर्ता की बदौलत कांग्रेस 15 साल का वनवास काटकर सत्ता में लौटी थी कार्यकर्ता के चेहरे में एक मुस्कान थी लेकिन वह पलक झपकते मायूसी में तब्दील हो गई इसका जवाब तो न कांग्रेस के आलाकमान के पास है और ना उनके सिपहसालारों के पास दिग्विजय सिंह पुत्र मोह में कांग्रेस की नाव को ऐसी जगह ले गए जहां उसके बचने का कोई उपाय भी नहीं रहा। अब कांग्रेस के बड़े नेताओं को मंच पर खड़े होकर कार्यकर्ताओं के गुण नहीं गाना चाहिए। क्योंकि वह झुनझुना पकड़ा कर कार्यकर्ताओं के मन मस्तिष्क में ऐसे विचार भर देते हैं कि वह उन्हें जिताने के लिए तन मन से जुड़ जाता है और जीतने के बाद नेता राजनीतिक ताने-बाने बुनते हैं। शतरंज की चाल फायदे के लिए चलते हैं। कार्यकर्ता को भूल जाते हैं। अगर अब कांग्रेस को सही तरीके से राजनीति करनी होगी। उसे आपने गिरेबान पर झांकना होगा। कहने का मतलब यह है कि पार्टी नेतृत्व को चाहिए कि वह उन चेहरों को पहचाने जो पूरी तरह स्वार्थी हो चुके हैं।
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