भगवान परशुराम किसी धर्म जाति वर्ण या वर्ग विशेष के आराध्य ही नहीं बल्कि वे समस्त मानव मात्र के आराध्य हैं, इन्होंने सनातन संस्कृत के वैभव को बढ़ाने का कार्य किया है, भगवान परशुराम जी ने एक युद्ध में 21 प्रजा शोषक, धर्मांध, और आताताई राजाओं का संहार किया था, लेकिन दुष्प्रचार के कारण यह बताया गया कि इन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था,
धर्म शास्त्रों के अनुसार, इनका जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था, इस तिथि को अक्षय तृतीया भी कहते हैं, परशुराम की जयंती हर साल अक्षय तृतीया को मनाई जाती है, इस बार इनकी जयंती आज 22 अप्रैल को मनाई जा रही है,
सनातन धर्म में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व माना गया है, प्रतिवर्ष यह तिथि वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में आती है, धर्म ग्रंथों में इस तिथि को बहुत शुभ फलदायी बताया गया है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी की पूजा करने और सोने की खरीदारी करने से घर में धन-धान्य की कमी नहीं रहती है,
1- ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी, इसके साथ ही द्वापर युग का समापन भी इस दिन हुआ था।
2- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति की प्राप्ति होती है।
3- अक्षय तृतीया का दिन बहुत शुभ होता है। इस दिन लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं। ऐसे में घर में रखे टूटे झाड़ू को बाहर निकाल देना चाहिए। इसके साथ ही इस दिन नया झाड़ू भी खरीद कर घर लाना चाहिए। ऐसा करने से ना सिर्फ घर में बरकत होती है, बल्कि माता लक्ष्मी प्रसन्न होती
4- अक्षय तृतीया के धन की पूजा का महत्व भी होता है। यही वजह है कि इस दिन किसी को उधार धन भी नहीं देने चाहिए और न ही किसी से लेना चाहिए। ऐसा करने से भी घर से मां लक्ष्मी चली जाती है और दरिद्रता घर में आती है। इसके अलावा इस दिन घर की तिजोरी की साफ सफाई करके पूजा पाठ करना चाहिए। तिजोरी किसी भी हाल में गंदा नहीं रखना चाहिए।
5- अक्षय तृतीया के दिन घर में रखे टूटे-फूटे बर्तन को भी बाहर निकाल देना चाहिए। टूटे-फूटे बर्तन से घर में नकारात्मकता आती है। इससे परिवार में अशांति फैलती है और माता लक्ष्मी का वास नहीं होता।