आखिर टिकट न मिलने पर इतनी बड़ी सजा क्यों? रेलवे प्रशासन के व्यवहार पर उठे सवाल…..
अमित मिश्रा/सतना।

सतना। बुधवार को रेलवे स्टेशन पर घटी एक घटना ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मामला सिर्फ एक टिकट का था, लेकिन इसे जिस तरह से निपटाया गया, उसने न सिर्फ छात्रा बल्कि यात्रियों के बीच भी आक्रोश और अविश्वास पैदा कर दिया। सवाल यह है कि क्या टिकट न होना इतना बड़ा अपराध है कि उसके लिए एक छात्रा को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाए, गालियां दी जाएं और थप्पड़ तक मारा जाए?
जैतवारा निवासी लॉ की छात्रा शालिनी ने महिला टिकट चेकर (टीसी) रेनू सिंह पर मारपीट और गाली-गलौज के गंभीर आरोप लगाए हैं। छात्रा का आरोप है कि उसे पकड़कर टीसी कक्ष में ले जाया गया, जहां उसके साथ अभद्रता की गई। विरोध करने पर न केवल गालियां दी गईं बल्कि थप्पड़ मारने के बाद दीवार से सिर टकराने की वजह से उसके चेहरे पर चोट भी आई।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में छात्रा रोते हुए कह रही है, आप लोग पैसे लीजिए लेकिन मारपीट मत करिए, गाली मत दीजिए। वीडियो में उसके चेहरे पर चोट के निशान साफ देखे जा सकते हैं। यही नहीं, मौके पर मौजूद अन्य यात्रियों ने भी बताया कि रेलवे स्टाफ का यात्रियों से ऐसा व्यवहार कोई नई बात नहीं है। कई बार इस तरह की घटनाएं होती हैं, लेकिन पहली बार यह मामला कैमरे में कैद होकर मीडिया में पहुंचा है।
एक अन्य यात्री ने मुख्य टिकट निरीक्षक डीके ओझा पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने छात्रा से अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया और यहां तक कह दिया, अगर लात खाने का काम करोगे तो लात खाओगे। अब सवाल यह है कि क्या वरिष्ठ अधिकारी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करने का अधिकार रखते हैं?
वहीं रेलवे प्रशासन ने आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया। मुख्य टिकट निरीक्षक ओझा का कहना है कि छात्रा बिना टिकट यात्रा कर रही थी। नियमानुसार उससे 80 रुपए किराया और 250 रुपए का जुर्माना वसूला गया। उनका दावा है कि मारपीट जैसी कोई घटना नहीं हुई और छात्रा ने जीआरपी में कोई लिखित शिकायत भी नहीं की।
लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या सिर्फ जुर्माना वसूलना पर्याप्त नहीं था? क्या छात्रा को सार्वजनिक रूप से अपमानित करना और कथित रूप से थप्पड़ मारना नियमों का हिस्सा है? क्या यही ट्रेनिंग रेलवे स्टाफ को दी जाती है कि वे यात्रियों से दुर्व्यवहार करें?
यात्रियों और छात्रा के आरोपों तथा रेलवे प्रशासन के इनकार के बीच सच्चाई क्या है, यह तो जांच से ही सामने आएगा। मगर इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि यात्रियों की सुरक्षा और सम्मान रेलवे के लिए आखिर कितनी प्राथमिकता रखते हैं।
यह घटना केवल एक छात्रा से जुड़े विवाद तक सीमित नहीं है। यह पूरे सिस्टम की उस सोच को उजागर करती है, जहां नियम के नाम पर यात्रियों को डराया-धमकाया जाता है और उनका अपमान किया जाता है। आमजन के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या रेल प्रशासन अपने कर्मचारियों को यात्रियों की सेवा और सुरक्षा के लिए नियुक्त करता है या उन्हें प्रताड़ित करने का लाइसेंस देता है।
आज यह मामला मीडिया में आ गया, वीडियो सामने आ गया इसलिए चर्चा हो रही है। लेकिन आम तौर पर कई ऐसी घटनाएं होती हैं, जिनकी भनक तक लोगों को नहीं लगती। यदि एक छात्रा के साथ ऐसा हो सकता है तो आम यात्रियों का क्या हाल होता होगा?
यात्रियों की मांग साफ है, जांच हो, दोषी कौन है यह सामने आए और रेलवे स्टाफ को यह समझना होगा कि यात्री अपराधी नहीं हैं। नियम तोड़ने पर जुर्माना वसूलना प्रशासन का अधिकार है, लेकिन अपमान और मारपीट किसी भी अधिकारी को शोभा नहीं देता। इस घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि रेलवे प्रशासन को अपने स्टाफ की कार्यशैली पर तत्काल नियंत्रण और सुधार की जरूरत है, वरना यात्रियों का विश्वास पूरी तरह से डगमगा जाएगा।