पूर्व जिलाध्यक्ष की पीड़ा बनी सैकड़ों कार्यकर्ताओं की आवाज़… पुष्पेंद्र प्रताप सिंह का छलका दर्द, क्या कार्यकर्ता की कीमत भूल गई भाजपा……
अमित मिश्रा/ सतना।

आख़िर कौन नहीं चाहता था कि शंकरलाल को एयर एंबुलेंस मिले?
लोगों ने कहा किसी मुख्यमंत्री के मंच से आज तक का सबसे चर्चित बयान… कहां जो श्रद्धांजलि देने आ रहे हैं उनका मैं मुंह नहीं देखना चाहता।
सतना। दिल्ली के एम्स अस्पताल में पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी के निधन के बाद एक सवाल पूरे जिले में गूंज रहा है, क्या वाकई शंकरलाल को एयर एंबुलेंस नहीं मिल सकी या फिर किसी की लापरवाही ने यह अवसर छीन लिया?
19 अक्टूबर को टाउन हॉल में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह के शब्दों ने इस मौन प्रश्न को खुले मंच पर ला दिया। उनकी आवाज़ में गुस्सा था, दर्द था, और सबसे ज़्यादा एक कार्यकर्ता के प्रति बेबसी की टीस थी।
उन्होंने रोते हुए भरे गले से कहा शंकरलाल कोई एक दिन में तैयार नहीं हो सकता, इसके लिए जीवन के 50 वर्ष देने होते हैं, उन्होंने अपने परिवार को कष्ट में डालकर संगठन को सींचा, आपातकाल के दौर में जब दो रोटियों के लिए परिवार तरसता था, तब शंकरलाल पार्टी के लिए खड़े रहे।
पुष्पेंद्र ने संगठन के मौजूदा स्वरूप पर सवाल उठाते हुए कहा- आज हम चमक-दमक की भाजपा में हैं, हजार रुपए मीटर का कुर्ता, बढ़िया गाड़ी और महंगे दुपट्टे में ही पहचान है, अगर ये नहीं है तो कार्यकर्ता कहलाने का हक भी नहीं।
उन्होंने कहा- पहले नेता आपस में टकराते थे पर रिश्ते नहीं टूटते थे। अब भाजपा में रिश्तों की जगह पद और स्वार्थ ने ले ली है।
उन्होंने अपनी बात की शुरुआत राष्ट्रकवि दिनकर की पंक्तियों से की…..संबंध कोई भी हों, यदि दु:ख में साथ न दे अपना… रह जाता कोई अर्थ नहीं,
फिर उन्होंने याद दिलाया- जब पूर्व नागौद मंडल अध्यक्ष रामजियामन सिंह का एक्सीडेंट हुआ था, तब हम कुछ कार्यकर्ता उन्हें लेकर दिल्ली पहुंचे, अटलजी खुद उठे, एम्स में भर्ती करवाया और न्यूरो सर्जन से बात की, कहा कि भारत या भारत के बाहर जैसा इलाज हो, वैसा किया जाए, वो थी अटलजी वाली भाजपा, जो कार्यकर्ता के आंसू पहचानती थी,
आंसू भरते हुए उन्होंने कहा- आज एक कार्यकर्ता जिसने 18 माह जेल में बिताए, 50 साल भाजपा को दिए, उसे इलाज के लिए एयर लिफ्ट करने का विमान नहीं मिला, इतनी बड़ी सत्ता होते हुए भी, 20 साल से सरकार में रहने के बाद भी, हम एक समर्पित कार्यकर्ता को समय पर दिल्ली नहीं भेज पाए, अगर वह एयर एंबुलेंस मिल जाती, तो शायद आज हमें श्रद्धांजलि सभा नहीं करनी पड़ती।
उन्होंने सवाल दागते हुए कहा- जब शंकरलाल एम्स में लावारिस लाश की तरह पड़े थे, तब मुख्यमंत्री क्या कर रहे थे? तब प्रदेश नेतृत्व क्या कर रहा था? यह सबकी जवाबदेही तय होनी चाहिए।
सभा में सन्नाटा छा गया। कार्यकर्ताओं की आंखों में नमी थी, नेताओं की निगाहें झुकी थीं। पुष्पेंद्र प्रताप सिंह की बातों ने भाजपा के अंदर की उस गिरावट को उजागर कर दिया, जिसकी गूंज अब हर कार्यकर्ता के दिल में है।
क्यों नहीं मिला एयर एंबुलेंस? किसकी लापरवाही थी? यह सवाल अब सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का है, जो कभी कार्यकर्ता के कंधे पर हाथ रखती थी, आज उसकी पीड़ा तक सुनने से कतराती है।
लोगों का कहना है की अब संगठन के प्रति समर्पण का कोई मोल नहीं, दिखावे और दौलत का युग हावी है, पूर्व विधायक शंकरलाल तिवारी के निधन के बाद आयोजित श्रद्धांजलि सभा ने सिर्फ एक नेता की याद नहीं दिलाई, बल्कि उस गहराते दर्द को भी उजागर कर दिया जो आज भाजपा के हजारों समर्पित कार्यकर्ताओं के दिल में पल रहा है।
कार्यकर्ता जो वर्षों से संगठन की रीढ़ बनकर खड़े हैं, आज खुद को हाशिये पर महसूस कर रहे हैं।
श्रद्धांजलि सभा में जब भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष पुष्पेंद्र प्रताप सिंह ने मंच से भावनाओं से भरे शब्दों में संगठन के हालात पर सवाल उठाए, तो लगा मानो यह सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि सैकड़ों निष्ठावान कार्यकर्ताओं की आवाज़ थी। उन्होंने कहा- शंकरलाल कोई एक दिन में तैयार नहीं हुए थे, उन्होंने अपना जीवन भाजपा को दिया, पर उनके अंतिम समय में संगठन मौन रहा।
उनकी इस पीड़ा ने शहर और जिले में नई चर्चा को जन्म दिया। लोग कहने लगे, आज संगठन में महत्व केवल आर्थिक और राजनीतिक रूप से सक्षम लोगों को मिलता है। जो दिखावे में आगे हैं, जो महंगी गाड़ियां और बढ़िया कपड़े पहनते हैं, वही पार्टी की पहचान बनते जा रहे हैं। जबकि जिन लोगों ने दशकों तक पार्टी के लिए संघर्ष किया, जेलें काटीं, अपने परिवार का बलिदान दिया वे अब सिर्फ दर्शक बनकर रह गए हैं।
चर्चाएं हैं कि आज भाजपा में वही पदाधिकारी बनता है, जो आर्थिक रूप से मजबूत है या फिर सत्ता से निकट संबंध रखता है, नई पार्टी से आए लोग रातोंरात पदाधिकारी बन जाते हैं, जबकि पुराने कार्यकर्ता आज भी पहचान के मोहताज हैं, श्रद्धांजलि सभा के बाद यह चर्चा गलियों से लेकर कैफे तक में गूंजती रही।
लोगों का कहना है कि जब शंकरलाल तिवारी जैसे सीनियर और ईमानदार कार्यकर्ता को संकट की घड़ी में संगठन ने अकेला छोड़ दिया, तो बाकी छोटे कार्यकर्ताओं की कौन सुध लेगा?
क्या केवल संगठन को बढ़ाने और प्रचार करने का दायित्व ही कार्यकर्ताओं का है?
क्या उनके सुख-दुख में साथ देना वरिष्ठ पदाधिकारियों की जिम्मेदारी नहीं?
पूर्व जिलाध्यक्ष की वह पीड़ा जिसने मंच पर आकार लिया, अब भाजपा के भीतर आत्ममंथन का कारण बन गई है।
हर कार्यकर्ता के मन में यह सवाल उठ रहा है, क्या संगठन अब सिर्फ सत्ता का माध्यम बनकर रह गया है?
क्या समर्पण की जगह दिखावे ने ले ली है?
शंकरलाल तिवारी का जाना सिर्फ एक व्यक्ति का जाना नहीं, बल्कि उस विचारधारा का कमजोर होना है जो कार्यकर्ता को सर्वोपरि मानती थी, आज उनके न रहने के बाद वही पुराना सवाल फिर ज़िंदा है, जब पार्टी संकट में कार्यकर्ता साथ देता है, तो कार्यकर्ता के संकट में पार्टी क्यों नहीं?