मृतक के नाम से जमीन नामांतरण का खेल, पूर्व सरपंच की पत्नी खरीदार, पटवारी के साथ तहसीलदार की मिलीभगत पर भी उठे सवाल!
अमित मिश्रा/सतना।

सतना। शहर और आसपास के इलाकों में बेशकीमती व विवादित जमीनों पर कुछ चर्चित पटवारियों की संदिग्ध भूमिका का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। ताजा मामला सोहौला ग्राम पंचायत का है, जहां मृत व्यक्ति के नाम से वारिसाना नामांतरण कर जमीन न केवल खुर्दबुर्द कर दी गई, बल्कि इसे औने-पौने दाम में बेच भी दिया गया। हैरानी की बात यह है कि इस जमीन के खरीदारों में पूर्व सरपंच की पत्नी भी शामिल हैं, जिससे इस पूरे सौदे में राजस्व अमले और पंचायत प्रतिनिधियों की मिलीभगत की आशंका और गहरी हो गई है।
कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार एस ने इस प्रकरण की जांच के आदेश दिए हैं। एसडीएम रघुराजनगर ग्रामीण एलआर जांगड़े ने प्राथमिक जांच रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें कई गड़बड़ियां उजागर हुई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, मृतक के नाम से वारिसाना उतरने के बाद अनीता सिंगरहा ने स्टांप ड्यूटी बचाने के इरादे से जमीन को सिंचित से असिंचित दर्ज कराने के लिए अपने मृत पति के नाम से ऑनलाइन आवेदन किया। इसके बाद उसने ऑफलाइन आवेदन अपने नाम से किया। राजस्व अधिकारी ने मृत व्यक्ति का आवेदन डिस्पोज कर दिया, जबकि इसे जांच में लेना चाहिए था। हल्का पटवारी ने भी रिपोर्ट में फर्जी जानकारी देकर जमीन को पड़त घोषित कर दिया।

पूरा घटनाक्रम
बीते दिन हुई जनसुनवाई में सोहौला निवासी देवकली सिंगरहा ने शिकायत में बताया कि उनके बेटे त्रिवेणी प्रसाद सिंगरहा की मौत 3 जुलाई 2021 को हो चुकी थी। बेटे की मौत के बाद बहू अनीता ने तपा निवासी रवि केवट से दूसरी शादी कर ली और वहीं रहने लगी। लेकिन, 1.587 हेक्टेयर जमीन, जो त्रिवेणी के नाम थी, को अनीता ने पटवारी, सरपंच और तहसीलदार की मिलीभगत से अपने नाम करा लिया।
अनीता ने 16 जून 2025 को, यानी पति की मौत के चार साल बाद, मृतक के नाम से वारिसाना नामांतरण का आवेदन किया। तत्कालीन पटवारी रश्मि शुक्ला ने महज दो दिन में 18 जून को नामांतरण प्रमाणित कर दिया। यही नहीं, उसी दिन जमीन का विक्रय पत्र भी तैयार कर दिया गया।
एसडीएम की जांच में सामने आया कि सरपंच सोहौला ने जो सजरा बनाया उसमें मृतक की पत्नी के अलावा माता और भाइयों का नाम शामिल नहीं किया गया। अनीता के नाम वारिसाना नामांतरण और जमीन असिंचित दर्ज होने के बाद 20 जून 2025 को यह जमीन मोना सिंह (पत्नी अखिलेश सिंह) और साधना पटनहा (पत्नी अरुण पटनहा) को बेच दी गई। खास बात यह है कि अरुण पटनहा सोहौला के पूर्व सरपंच हैं। इसके बाद 25 जून को अभिलेख दुरुस्त कर दिए गए।
शहर में चर्चाओं का बाजार गर्म
यह मामला केवल एक फर्जी नामांतरण का नहीं है, बल्कि इसने एक बड़े रैकेट की परतें खोल दी हैं। शहर में चर्चाएं हैं कि कुछ चर्चित पटवारी कई बार जानबूझकर जमीनों को विवादित कर देते हैं, ताकि बाद में अपने साझेदारों को औने-पौने दाम में दिलवा सकें। इन सौदों में स्टांप ड्यूटी बचाने के लिए सिंचित को असिंचित दर्ज कराने जैसी तकनीकें अपनाई जाती हैं।
सूत्रों का दावा है कि यदि इन पटवारियों और संबंधित राजस्व अधिकारियों के बैंक खाते, प्रॉपर्टी डिटेल और कॉल रिकॉर्ड की गहन जांच की जाए, तो करोड़ों रुपये के कई और सौदों का खुलासा होगा, जिनमें प्रॉपर्टी कारोबारी, पंचायत प्रतिनिधि और सरकारी अमले की गठजोड़ से बेशकीमती जमीनें हाथ बदल चुकी हैं।
कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार एस ने स्पष्ट किया है कि एसडीएम की प्राथमिक जांच में गड़बड़ी साफ दिखाई दे रही है। प्रकरण दर्ज कर सभी पक्षों को सुनने के बाद विधि अनुसार कार्रवाई होगी और राजस्व अमले व अन्य की भूमिका की विस्तृत जांच कराई जाएगी।
यह मामला अब सिर्फ एक गांव या एक परिवार का नहीं रहा, बल्कि सतना में जमीनों के सौदों में चल रहे सरकारी-निजी गठजोड़ की सच्चाई उजागर करने की कड़ी बन सकता है।