व्यय शाखा से 23 प्रतिशत का खेल….

विकास के नाम पर बंदरबांट की पूरी स्क्रिप्ट तैयार…….
सतना। सिविल लाइन के समीप एक सरकारी कार्यालय में अगर किसी योजना के लिए 1 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत होता है, तो इसकी वास्तविक उपयोगिता शुरू होने से पहले ही 23 लाख रुपये व्यय शाखा प्रभारी निकाल लेता है। यह राशि सीधे-सीधे अफसरों में बंदरबांट के लिए जाती है और दिलचस्प बात यह है कि यह एडवांस कमीशन होता है, जिसे व्यय शाखा प्रभारी खुद अपनी जेब से अग्रिम रूप में देता है। यही कारण है कि इस पूरे खेल का सबसे बड़ा और अहम खिलाड़ी व्यय शाखा प्रभारी ही होता है।
भ्रष्टाचार की चरणबद्ध व्यवस्था:
पहला चरण– एडवांस कमीशन:
अगर 1 करोड़ का बजट मिला तो उसमें 23 प्रतिशत यानी 23 लाख रुपये, योजना शुरू होने से पहले ही अधिकारियों में बांट दिए जाते हैं। इस काम का मास्टरमाइंड खुद व्यय शाखा प्रभारी होता है, जो यह रकम सिस्टम में सेटिंग के तौर पर आगे बढ़ा देता है।
दूसरा चरण- कार्य का दिखावटी क्रियान्वयन…..
बचे हुए 77 लाख रुपये में ही कागजी निर्माण कार्य और अन्य खर्च दर्शाए जाते हैं। इसमें गुणवत्ता और पारदर्शिता की जगह, खानापूर्ति और दिखावा होता है।
तीसरा चरण– बची राशि की नई बंदरबांट…
इस धनराशि में भी जो पैसा बचता है, उसका 60% हिस्सा विकासखंड स्तरीय अधिकारी रखता है।
बाकी 40% में सर्किल प्रभारी और स्थानीय कर्मचारी (सिपाही/मददगार) अपना हिस्सा बांट लेते हैं।
भूमिका……
इस पूरी प्रक्रिया में सबसे अधिक मजबूत और नेटवर्क संचालित व्यक्ति व्यय शाखा प्रभारी होता है, जो एक तरफ योजना की जिम्मेदारी संभालता है और दूसरी ओर पूरे भ्रष्ट तंत्र का संचालन करता है। योजनाएं सिर्फ कागजों में दिखती हैं, जमीनी हकीकत में जनता को उनका लाभ न्यूनतम ही मिल पाता है।