चोरी का शक, जेब में रोटी-नमक… क्या गरीब होना अब जुर्म है? अस्पताल के बाहर खुलेआम बर्बरता…….
अमित मिश्रा/सतना।

दो रोटी और नमक निकला जेब से, फिर भी गरीब को पीटते रहे,
सतना जिला अस्पताल में मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटना,
सतना। सरदार वल्लभ भाई पटेल जिला अस्पताल परिसर में मंगलवार को दिल दहला देने वाली घटना सामने आई, जिसने न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए, बल्कि समाज की संवेदनहीन होती मानसिकता को भी बेनकाब कर दिया। चोरी के शक में एक गरीब युवक को बेरहमी से पीटा गया। जब उसके कपड़े और जेब खंगाली गई तो उसमें से केवल दो सूखी रोटियां और नमक की पुड़िया निकली।
जानकारी के मुताबिक यह युवक किसी अपने मरीज को देखने अस्पताल आया था। बाहर निकलते ही दो युवकों ने उसे चोर बताकर घेर लिया। न कोई सवाल-जवाब, न कोई ठोस आधार, सीधे लात-घूंसे और फिर डंडों से उसकी पिटाई शुरू कर दी गई। युवक बार-बार हाथ जोड़ता रहा, रो-रोकर कहता रहा कि वह चोर नहीं, लेकिन उसकी एक न सुनी गई।
अस्पताल परिसर में दर्जनों लोग मौजूद थे, पर कोई उसे बचाने आगे नहीं आया। सिर से खून बहने लगा, हाथों में चोटें आ गईं, मगर हमलावरों का ‘इंसाफ’ जारी रहा। जब युवक अधमरा हो गया, तब दोनों आरोपियों ने उसकी तलाशी ली। जेब में मिली सिर्फ दो रोटियां और नमक की पुड़िया। यह देख हमलावर सन्न रह गए और मौके से फरार हो गए।इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या गरीब होना आज के समाज में अपराध बन गया है?
क्या न्याय केवल अमीर, दबंग और रसूखदारों के लिए आरक्षित है?
क्या अब किसी को पीटना, उसे चोर घोषित कर देना इतना आसान हो गया है?
सबसे शर्मनाक बात यह रही कि इस बर्बरता का वीडियो भी किसी ने बना लिया, लेकिन बचाने की पहल किसी ने नहीं की। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो ने जिला प्रशासन और पुलिस की नींद तो जरूर उड़ाई होगी, लेकिन अब तक किसी भी थाने में एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। न पीटने वाले पकड़े गए और न ही पिटने वाला युवक आगे आया। वह चुपचाप वहां से चला गया, शायद यह सोचकर कि वह गरीब है, इसलिए उसकी कोई सुनवाई नहीं होगी।
अब सवाल उठता है, क्या प्रशासन इस घटना का संज्ञान लेगा? क्या आरोपी युवकों की पहचान कर उन्हें सजा दिलाई जाएगी? या फिर यह मामला भी उन हजारों घटनाओं की तरह फाइलों और सोशल मीडिया पोस्टों में दफन हो जाएगा?
कानून की किताब में ‘बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए’ लिखा है। लेकिन हकीकत में अक्सर गरीब, भूखे और बेसहारा ही ‘संदेह’ के नाम पर पीटे जाते हैं। यह घटना उसी क्रूर मानसिकता की एक और मिसाल बन गई। अब फैसला प्रशासन को करना है, इंसाफ होगा या फिर गरीब की चुप्पी ही उसकी सबसे बड़ी सजा बनी रहेगी?