मध्यप्रदेशसागर

एकमात्र समन्वयकारी महापुरुष कवि गोस्वामी तुलसीदास जी- जगद्गुरु स्वामी रामलला चार्य….

आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र श्री मानसपीठ खजुरीताल में गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज की एवं जयंती संत महापुरुष एवं भक्तों के मध्य बहुत ही उत्साह धूमधाम के साथ मनाई गई,
जगद्गुरु रामलला चार्य जी महाराज ने कहा कि भारत की वैचारिक आकाशगंगा में अनेक तारे-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र रूपी विविध व्यक्तित्व नज़र आते हैं। लेकिन समन्वय की विराट चेतना बहुत ही कम महापुरुषों में दिखाई पड़ती है। समन्वय की विराट चेतना के जगमगाते सूर्य गोस्वामी तुलसीदास जी हैं।

तुलसीदास जी समन्वय की ऐसी धुरी हैं जिसके इर्द-गिर्द देखने से ज्ञात होता है कि, वे आज चार सौ वर्षों के बाद भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस काल मे थे। उस समय की विरोधाभास और विपरीत परिस्थितियों ने एक ऐसे महापुरुष को जन्म दिया जो भारत के समाज की व्यवस्था के लिए महाप्रबंधक भी सिद्ध हुए।
शैव-वैष्णव, भक्ति-ज्ञान, सगुण-निर्गुण, जाति-कर्म आदि आदि अनेक विचारशाखा जो स्वयं में विपरीत लगने लगी थी और उनके अनुयायी आपस में लड़ने की स्थिति तक पहुँच जाते थे। ऐसी विचारधाराओं के मध्य तुलसीदास जी ने सुंदर सेतु का निर्माण किया, दोनो के मध्य उचित संबंध को प्रकाशित किया। राम भक्त का अद्भुत लक्षण ये ही है कि वह समाज मे सेतु का कार्य करता है। तुलसीदास जी ने जन्म से ही उन सभी विकट परिस्थितियों का सामना किया जिसकी कल्पना से भी हम कांप उठते हैं, लेकिन राम जी के प्रताप के सामने सब कुछ फीका है। हजारों वर्षों की साहित्य परंपरा में जो सम्मान तुलसीदास जी के महाकाव्य राम चरित मानस को प्राप्त हुआ वह किसी अन्य ग्रंथ को नहीं। हिंदी साहित्य ग्रंथ जगत में जितनी टीकाएँ रामचरित मानस पर लिखी गई उतनी किसी अन्य पुस्तक पर नहीं लिखी जा सकी।
तुलसीदास जी कवि, संत, महापुरुष, समालोचक और सामान्य जीव इन सभी रूप में खरे दिखाइ पड़ते हैं, जो उन्हें पढ़ता-सुनता है; वह स्वयं को उनसे जुड़ा हुआ पाता है। दिनकर जी लिखते हैं- सच है, विपत्ति जब आती है,कायर को ही दहलाती है।
जिनके पास राम नाम रूपी संपत्ति हो उनके लिए विपत्ति भी अवसर बन जाती है, और तुलसीदास जी के पास राम नाम की संपत्ति जन्म से थी। जगत विदित है कि जन्म लेने के बाद पहला शब्द राम निकलने के कारण तुलसीदास जी के बचपन का नाम रामबोला हो गया था।
रामानंदाचार्य मानसपीठ खजुरीताल की धरोहर रामचरित मानस है। हम मानस को केवल घर मे न रखे, अपितु हृदय में स्थापित करे। मानस केवल पढ़ें नहीं, अपितु उसे जीने का प्रयास करें। जब हम तुलसीदास जी जैसे महापुरुषों के शब्दों के आधार पर जीवन जिएंगे, तो आध्यात्मिक और लौकिक उन्नति दोंनो होगी। तुलसीदास जी वाद-विवाद के कवि नहीं हैं, संवाद-सेतु के कवि हैं।
तुलसीदास जी के इस जन्म जयंती महामहोत्सव में विशेष रूप से स्वामी रघुनाथ दास, मानस राजहंस मथुरादास उपाध्याय, व्याकरणाचार्य रमाकांत मिश्र, रामस्मरण पाठक,सिद्धशरण पाठक, पुरुषोत्तम प्रसाद शर्मा,अंबिका प्रसाद मिश्र, किशोरी चरण पटेल,राकेश सोनी,सुधीर सोनी सहित अनेक मानस प्रेमी जन उपस्थित रहे सभी ने अपनी अपनी वाक्य पुष्पांजलि गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के चरणों में समर्पित की।

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